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________________ ११६ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन आत्मामें अपूर्व शक्ति माती है। नित्य मन, वचन और कायकी शुद्धिपूर्वक इस मन्त्रका १०८ बार ध्यान करनेसे भोजन करनेपर भी चतुर्थोपवास-प्रोषधोपवासका फल प्राप्त होता है। योगो व्यक्ति इस मन्त्रकी आराधनासे अनेक प्रकारको सिद्धियोको प्राप्त होता है तथा तीनो लोकोमें पूज्य हो जाता है। __णमोकार मन्त्रको सभी मात्राएँ अत्यन्त पवित्र हैं, इन मात्राओमें से किसी मात्राका तथा णमोकार मन्त्र के ३५ अक्षरों और पांच पदोमें-से किसी अक्षर और पदका अथवा इन - अक्षरो, पदो और मात्रामओके सयोगसे उत्पन्न अक्षर, पदो और मात्राओका जो ध्यान करता है, वह सिद्धिको प्राप्त होता है। ध्यानके अवलम्बन णमोकार मन्त्र के अक्षर, पद और ध्वनियां ही हैं। जबतक साधक सविकल्प समाधिमें रहता है, तबतक उसके ध्यानका अवलम्बन णमोकार ही होता है। हेमचन्द्राचार्यने पदस्थ ध्यानका वर्णन करते हुए बताया है यस्पदानि पवित्राणि समालम्ब्य विधीयते । तत्पदस्थं समाख्यातं ध्यानं सिद्धान्तपारंगै. ॥ अर्थात् पवित्र णमोकार मन्त्रके पदोंका आलम्बन लेकर जो ध्यान किया जाता है, उसको पदस्थ ध्यान सिद्धान्तशास्त्रके ज्ञाताओंने कहा है । रूपस्थ ध्यानमें मरिहन्तके स्वरूपका अथा णमोकार मन्त्रके स्वरूपका चिन्तन करना चाहिए। रूपस्थ ध्यानमें आकृतिविशेषका ध्यान करनेका विधान है। यह आकृतिविशेष पंचपरमेष्ठाको होती है तथा विशेष रूपसे इसमें अरिहन्त भगवान्की मुद्राका ही मालम्बन किया जाता है। ___ रूपातीतमें ज्ञानावरणादि आठ कर्म और औदारिकादि पांच शरीरोंसे रहित, लोक और अलोकके ज्ञाता, द्रष्टा, पुरुपाकारके धारक, लोकाग्रपर विराजमान सिद्ध परमेष्ठो ध्यानके विषय हैं तथा णमोकार मन्त्रको रूपाकृतिरहित, उसका भाव या पंचपरमेष्ठोके अमूर्तिक गुण ध्यानका मालम्बन होते हैं। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती और शुभचन्द्रने रूपातीत
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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