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________________ • एक शत एक प्रघाती =पादितीन अंतराय स्थितितीस होतेहै। नामगोतवीस मोहनीसन रि के के रिधिया की सागर तेतीस उद्यानहै। वेदनी चौवीसधरी सोल नाम गोत पांचौ च्यंतर नहंती विना सैग्पानजेो तिहै । ६८। अथनामकर्म प्रकतितिराणवैनांमसेवे या तनबंधन संघात्तव रसज्ञात पंच संस्थानसं घन षट्याठफास हे गति अनुपूर चारिदाय विहागंध=पंगतीन पेस ठि एव स्थूलभाप्त है। पर्याप्त थिर सुभा स्वर आदर दोदे। निरमाण स्वास है। अपघात पर घात त्र्यगुरुलघु प्रताप उद्यो करजी व दो अधनासहै । ७०) अयजेव द्वीपपूर वयश्चिमव्यौरा ॥ जेवू द्वीप कलाष मेरु इस ही हजार भद्रसाल दोवन सहस चवालीसके। बाकी छ्यालीसमाधौ आधदोनो ही विदेहदेवार एपवनउनतीसस वाईस के। तीनो ने दी यौनचारसत्त चारा ही वृक्षार दोह रसाठी ही विदेह व चईस के। सत्तरै सहस सातसे ती नयोजन के नमों चारतीर्थंकर स्वामी जाग दी सके । ७१| दक्षिएउत्तरव्यो। जन द्वीपद क्षिनउत्तर लावयोजनकैौभाग एक सौ एकभरत पाइये। दोय हिमव नसेल च्यारि हैमवत क्षेत्रमहाहिमवन आटसेोलैरगाईयै
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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