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________________ चरणं द्रव्यं न्मः शास्त्रीभ्पासो | जिनपनिनुतिसंग तिः सर्वदार्यैः सहूतानां गुणांक था। दो खवा देच मैौ नं सर्वस्यापिप्रिय हितबचो | भावना चात्मतत्वे | संपयंता ममभवभवे। यावदेते पवर्गः॥ तच पादौ ममहदये। ममहदयेत्तव पादहलीनं नि व्यजिनेंद्र नायता यावन्निर्वाण संप्राप्ति प्रक्ष रपय यही मनाही यांच जम्मयेभणियां ख | मउगांगदेवया मझ विदुखं खयं दितु। १श दुख | खकम्मा उ| समाहिम रगांच बो हिला हो है। म महोई। मम होईजगनबंधातुव जिनवरचरणा सरोग॥१॥ च दुर्बानी का मध्यानीका प रानी का देवबंदना या । पर्चाचार्य नुक्रमे एएस कल कर्मायार्थ भाव प्रजाबंदनी । स्तसमेतं श्री अर्हतभक्तिमाचार्यभक्ति। पंचमहागुरुभक्तिं माधिभक्तिभक्ति। शांतिभक्तिका योन स करोम्प | रामअरहंता । गामो सिद्धाराम। "माइरिया गां। राम उवसायागमो लो ये सच्च साहू । उत्पा दिजाणं । उ छा रखा ।। इति श्रीदेव जासं पूर्णम् ॥ मघवी सविररुमानजी की एजा लि रखते । पूर्वापर विदेहेषु विद्यमान जिनेनि वरा स्थापयामित्येतत्र सुद्द सम्यक्त हेतवे ॥ २॥ २२॥
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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