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________________ ५८ मन में उठयोड़ा सवाला रा जवाब वी नी देला, बठा ताई म्है प्रणा नै सर्वज्ञ नी मानूला। गौतम रै मन री आ भावना जाण महावीर बोलियाआयुस्मान गौतम ! थांन प्रातमा रै अस्तित्व पर संका है। यां सोचरया हो के पातमा (जीव) नाम रो कोई तत्त्व है या नी ? गौतम आतमा रो अस्तित्व है । वा प्रांख्यां सूकोनी देखी जा सके। प्रातमा इन्द्रिय ज्ञान सू परै अनुभव री वस्तु है। महावीर कैवता जायऱ्या हा-इन्द्रभूति ! तत्त्व नै तर्क सूसमझो, अनुभव सूजाणो अर हरदय सूबीन मंजूर करो । थां खुद विद्वान हो । थानै बत्तो कैवण री जरूरत कोनी। __ महावीर रा प्रेम भऱ्या सबद सुरण इन्द्रभूति री सै संकावां मिटगी। वारो अहंकार गळग्यो । वी विनय भाव सूकैवरण लाग्याभगवन् ! आज म्हारै भरम रा मैं आवरण दूर व्हैग्या । आप म्हनै सांचो रास्तो बतावरण आळा हो । म्हूं आज सूआपनै म्हारा गुरु मानू हूं। म्हनै आप रै सरणा में राखो पर आतम साक्षात्कार करण रो गैलो बतावो। ज्ञान रा प्यासा, सांच रा इच्छुक इन्द्रभूति महावीर रा शिष्य बरणग्या । वार साग वांरा पांच सौ चेला भी महावीर रै चरणों में दीक्षा ग्रहण करी ।। इन्द्रभूति गौतम रै दीक्षित होणे रा समीचार विजळी री दाई सब ठौड़ फैलग्या । सोमिल रै यज्ञ में तहळको मचग्यो । वेदान्त पंडित अग्निभूति पर वायुभति परण महावीर ने आपण ज्ञानबळ सू पराजित करण री भावना सू भगवान रै कनै प्राया, पण नड़े आवतां-आवतां वांरो अहंकार चूर-चूर व्हैग्यो। प्रभु महावीर सूप्रापरणी सकावां रो समाधान पार वै भी भगवान रा शिष्य बरणग्या। शिष्य इण भात आर्य व्यक्त, सुधर्मा, मंडित, मौर्यपुत्र, प्रकम्पित, अचळाभ्रता, मेतार्य पर प्रभास जिसा पंडित महावीर ₹ चरणां में दीक्षा लीवी । महावीर रा औ पैला ग्यारह शिष्य गणधर कहीजै ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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