SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'प्रायोड़ा हा। यज्ञ रो में काम इन्द्रभूति जिसा वेदान्त पडित र हाथां मे हो। वैसाख सुदी ग्यारस रो मंगळ परभात हो । देवता एक बड़े समवसरण ( सभागृह ) री रचना करी ॥ उण समवसरण में भगवान जनता नै उपदेश देणो सरू करियो। वारी अमरत वाणी सुग से जण हरख अर उमाव सूभरग्या। महावीर री वाणी मुणवा खातर पाकास मारग सू देवगण भी पाया हा । या देख इन्द्रभूति गौतम नै पापणी विद्वता पर आंच श्रावती सी लागी। महावीर नै उणीज नगरी मे आया जाण वा प्रभ रै अलोकिक ज्ञान री परख करवा पर सास्त्र ज्ञान में वांनै हरावण रै भाव सूउण समवसरण मे पाया । वारै सागै पांच सौ चेला अर बीजा पडित पण हा । इन्द्रभूति गौतम जिण समय समवसरण में पहुंचिया, वार मन मे महावीर बदळो लेवण री भावना उमड री ही । वां उठे पौंच'र महावीर कानो देखियो । वान लागौ के महावीर री प्रांख्या यूप्रेम र मित्रता री अमरत वरवा वैयरो है।। इन्द्रभूति नै आवता देख महावीर वोलिया-गौतम ! था आयग्या ! गौतम नै लाग्यो-महावीर री वाणी में प्रेम, अपणायत अर मित्रता रो भाव है। वारै मन में उठी बदळ री भावना सांत हुयगी। महावीर रै भूडा सूअापणो खुदरो नाम सुण गौतम नै घणो अचम्भो हुयो। वी सोचण लाग्या-म्हारी ज्ञान री चरचा सगळी जगां है, ई खातर महावीर म्हारै नाम जाणता वेला । पण जठा ताई म्हारै - १ दिगम्बर परम्परा मुजब भगवान महावीर री पैली देसना राजगृह र विपुलाचळ पर सावरण वदी एकम र दिन हुई।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy