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________________ ८ केवलीचर्या केवलज्ञान । महावीर री साधना रै तैरमे बरस रो सातवो महीनो हो । वैसाख सुद दसमी रो चौथो पहर । महावीर जभिय ग्राम रे बारे ऋजुबालुका नदी रै किनारे स्यामाक नाम रै गाथापति रै खेत में साळ रुख रै हेटै ध्यानमगन हा। बांके दो दिनां रो निजळ उपवास हो । इणीज ध्यान मुद्रा में भगवान नै केळवज्ञान री प्राप्ति हुयी। अब वी प्रत्यक्ष ज्ञानी बणग्या । सगळा लोक रै जीवां-अजीवा री सब पर्याया नै देखबा पर जाणबा री खमता वांमें पायगी। महावीर री केवळज्ञान सू पैलां री साधना आतमकल्याण री साधना ही। अब लोककल्याण री भावना वाँकै मन में आई। प्रबार तांई प्रातमदरसण खातर वी मून राख'र सूनी ठौड मे ध्यान पर तप करता हा । अब वानै कठोर साधना रो फळ मिलग्यो हो । वांनै आतम साक्षात्कार हुयग्यो। अब वी जातपात रो भेदभाव मेट'र वासना अर दासता री बेडिया सू मिनखां नै मुक्त करर आजादी रो वातावरण देणो चावता हा। महावीर री अनन्त करुणा अर भाईचारा री भावना वांनै संसार रो कल्याण करण री प्रेरणा देय री ही। ग्यारह गराधर केवळज्ञान पाम्या पछै महावीर मध्यम पावा पधारिया । अठ आर्य सोमिल एक बहुत बड़ो यज्ञ रचियो। बड़ा-बड़ा पंडित यज्ञ में
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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