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________________ ११८ कोनी के वो उरणांमें कोई बदळाव नी ला सके। करम बांधण में मिनख नै जित्ती स्वतंत्रता है, उत्तीई स्वतंत्रता उणनै करम भोगण में भी है । पुरुसारथ रै बळ सूमिनख करम रे फळ में परिवर्तन ला सके । भगवान महावीर करम-परिवर्तन रा चार सिद्धान्त बताया-- १. उदीरणा -नियत अवधि सू पैलां करम रो उदय में आवरणो। २. उद्वर्तन-करम री अवधि अर फळ देण री शक्ति मे बढ़ोतरी हुवणी। ३ अपवर्तन-करम री अवधि भर फळ देण री सक्ति मे कमी होवरणी। ४. संक्रमण-एक करम प्रकृति रो बीजी करम प्रकृति में संक्रमण हुवरणो। इण सिद्धान्त र माध्यम सूप्रभु महावीर बतायो के मिनख आपरणे पुरुसारथ रै बळ सूबंध्योड़ा करमां री अवधि कम-बेसी कर सकै । वो करमां री फळ-सक्ति नै मंद या तीव्र पण कर सके । इण भांत नियत अवधि सूपैलो करम भोग्यो जा सके । तीव्र फळ पाळो करम मंद फळ आळं करम रै रूप में अर मंद फळ पालो करम तीव्र फळ पाळे करम रै रूप में भोग्यो जा सकै । पुण्य करम रा परमाणु पाप रे रूप में अर पाप करम रा परमाणु पुण्य रे रूप में संक्रात हुय सके। करम रा में सिद्धान्त मिनख नै निरासा, अकर्मण्यता, पर पराधीनता री मनोवृत्ति सू बचावै । जैमिनख रो वर्तमान पुरसारथ सत् हुवै तो वो अतीत रा असुभ करम-संस्कारी नै नष्ट कर सके या उरणांनै सुभ में बदळ सकै । पर जै उणरो वर्तमान पुरसारथ असत् हुवै तो वो आपण लाभ सू भी वंचित रैय जावै । संक्षेप में कयौ जा
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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