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________________ ११९ सके के जो मिनख प्रापणे पुरषारथ रै प्रति सांची है, जागरूक है, तो वो आपण कर मां री अधीनता सू बार निकळ सके। महावीर रो करम सिद्धान्त इण बात पर जोर देव कै मिनख नै मिल्योड़ा दुखसुख किरणी ईश्वर र विरोध या किरपा रा प्रतिफळ कोनी। वां रो कर्ता-भोक्ता मिनख खुदईज है पर वीं में ईज आ ताकत है के वो प्रापणं साधना रै बळ सूअापणो भाग्य (कर्म) बदळ सकै । ईश्वरनिर्भरता सू छुड़ा'र मिनख नै प्रातम निर्भर वरणावरण में महावीर रै करम सिद्धान्त री महत्त्वपूर्ण भूमिका है । [४] तप राग-द्वषादि पाप करमां सूजै पातमा मलीन पर असुद्ध हुवी। उगरी सुद्धि खातर तप रो विधान है। तप एक इसी आग है जिमें तप'र आत्मा विसुद्ध वरण जाने। तप दो भांत रो हुवै-(१) बाह्य तप (२) याभ्यन्तर तप । वाह्य तप: जिरा क्रिया रे करण सू, इन्द्रियां रो निग्रह हुवे, वृत्तियां रो संयम हुवै, लोगां ने भी मालूम हुने के ओ तप कर र्यो है वो बाह्य तप कहीजै, जियां उपवास या दस बीस दिनांरी लाम्बी तपस्या या विगय (घी, दूध, दही आदि) त्याग तथा सरीर नै सरदी, गरमी आदि में राख'र तकलीफा सहन करण रो अभ्यास करणो आदि । वाह्य तप रा छ भेद : वाह्य तप रा छ भेद है-अनसन, ऊरपोदरी, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, कायकलेस पर प्रतिसंलीनता । १. अनसन अनसन रो अरथ है-याहार रो त्याग करणो। यो तप
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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