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________________ देव, नारक, मनुष्य, पशु-पंछी रे सरीर, इन्द्रिय, अवयव वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि री रचना करें । नाम करम रा दो भेद हुने-सुभ पर असुभ । सुभ नाम करम सूरूबाळो, सुडौळ, आकर्षक पर प्रभावशाली सरीर वर्ण अर असुभ नाम करम सूबदसूरत, वेडोल सरीर री स्थिति हुगे। ७. गोत्र : गोत्र करम जीव री उण स्थिति से निर्धारण कर जिण रे कारण जीव इसा कुळ, जाति, परिवार आदि में जनम लेने के वो ऊंचो-नीचो समस्यो जावै । ई करम से तुलना कुम्हार सू करी जानै। जियां कुम्हार भात-भतीला धड़ा वरणागै, उणांमें सूकुछेक घड़ा इसा हुवी के लोग वारी अक्षत, चंदरा आदि सू पूजा करै पर कुछेक घड़ा इसा हुौ के दारु मादि राखण में काम आने पर खराव समझया जाने। ८. अन्तरायः अन्तराय करम रै उदय सू प्रातमा रो दान, लाभ, भोग उपभोग पर वीर्य (वळ ) सम्बन्धी सक्तियां में रुकावट प्रानै । इण करम रै कारण इज लोगां में साहस, वीरता, प्रातम विश्वास आदि री कमी-बेसी हुगे । ओ करम खजांची ₹ मानिन्द है । जियां राजा रो हुकम हुवरण पर भी खजांची रै विपरीत होणे सूइच्छा माफक धन री प्राप्ति में रुकावट पड़े, उणीज भांत पातमा रूप राजा री दान, लाभ आदि री अनन्त शक्ति होता इयां भी ओ करम उण रै उपभोग में बाधा डाले। पुरुसारथ पर करम : मिनख प्रापण करमा (भाग्य) रो खुद निरमाता है। वो मापण कियोड़े करमा नै भुगतरण खातर बाध्य है, पण इतरो बाध्य
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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