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________________ ११ सुख रो अनुभव करै अर असाता वेदनीय रै उदय सूजीव दुख रो अनुभव करै । वेदनीय करम सैंत सूपुत्योड़ी तलवार रै माफिक है। सैंत पुत्योड़ी तलवार री धार चाटतां समय जो छणिक सुख मिल वो साता वेदनीय अर चाटतां वगत तळवार री धार सूजीभ कटण रो जो दुख मिले वो असाता वेदनीय । कवा रो मतळब प्रो के संसार रा सगळा सुख दुख-मिश्रित है। ४. मोहनीय मोहनीय करम दारू रै माफक है । ज्यू दारु मिनख री बुद्धि नै नष्ट करै अर वो बेभान हुय जाग, वीं नै हिताहित रो ज्ञान नीं रैवै, उणीज भांत प्रो करम आत्मा रै ज्ञान सुभाव नै विकृत बणाने । उणमै पर पदार्थारै प्रति ममत्व बुद्धि जगायै । आठ करमां माय मोहनीय करम सगळा सू भयंकर अर ताकतवर है । प्रो करमा रो राजा कहीजै। ५. आयु प्रायू करम री स्थिति सू प्राणी जीने पर उणरै नष्ट हुवण सूजीव मरै । इण करम रो सुभाव कैदखाना रै माफिक है । जियां अदालत सू सजा पायोड़ो अपराधी पूरी सजा पायां बिगर पैलां नीं छूट सकै, उणीज भांत आयु करम जठा ताई बणियो रैनै बठा ताई जीव आपण सरीर रो त्याग नी कर सके। आयु करम रा नरकायु, निर्यञ्च प्रायु, मनुष्य प्रायु अर देव आयु अ चार भेद है । ६. नाम : नाम करम जीव नै एक जूण सूदूसरी जूण में ले जाने । इण करम रै कारण इज जीव री जूण अर जूण सम्वन्धी सरीर री अवस्था-व्यवस्था निश्चित हुनै। ओ करम चित्रकार रै मुजब है। जियां चित्रकार भांत-भांत रा चित्र बणाने उणीज भांत भो करम
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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