SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करै अर प्रदेस बन्ध ग्रहण करियोड़ा करम पुद्गलां नै कमवेसी परिमारण में बांटे। ७. सवर तत्त्व : करम रै आवण रो रास्तो रोकणो संवर है । संवर प्रातमा री राग-द्वष मूलक असुद्ध वृत्तियां नै रोकै । संवर रा पांच भेद इण भांत है (१) सम्यक्त्व-विपरीत मान्यता नी राखणी। (२) व्रत-अठारह प्रकार रै पापां सूबचणो । (३) अप्रमाद-धरम रै प्रति उत्साह राखणो। (४) अकषाय -क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायां रो नास करणो। (५) अयोग--मन, वचन, काया री क्रियावां रो रुकणो। ८. निर्जरा तत्त्व : आतमा में पैलां सूआयोड़ा करमां रो क्षय करणो निर्जरा है । निर्जरा प्रातम सुद्धि प्राप्त करण रै मारग में सीढियां रो काम करै । प्रा दो भांत री हुवै-(१) सकाम निर्जरा अर (२) अकाम निर्जरा । सकाम निर्जरा में विवेक सूतप आदि रो साधना करी जावै । अकाम निर्जरा मे बिना ज्ञान अर सयम सूतप साधना करी जावै । विना विवेक अर सयम सूकरियोड़ो तप बाळ तप कहीजै । इण सूकरम निर्जरा तो हुवै, पण सांसारिक बधण सू मुक्ति नीं मिले । ६. मोक्ष तत्त्व : मोक्ष रो अरथ है-सगळा करमा समुक्ति । राग अर द्वेष रा सम्पूर्ण नास। मोक्ष प्रातम विकास री चरम पर पूर्ण अवस्था है।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy