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________________ इण अवस्था में स्त्री-पुरुप, पशु-पक्षो छोटा-बड़ा आदि रो काँइ भेद नी रवै । प्रातमा रा सगळा करम नष्ट हुवण पर वा लोक र अग्न भाग में पौन जावै । व्यावहारिक भाषा में उण नै सिद्धशिला कैवै । यूं मोक्ष कोई स्थान नी है । जिण भांत दीपक री लौ रो सुभाव ऊपर जावणो है, उणीज भांत करम मुक्त पातमा रो सुभाव पण ऊपर उठण ( अर्ध्वगामी हुवण ) रो है। करमा सू मुक्त हुवण पर प्रातमा पापणे सुद्ध सुभाव सूचमकबा लागे । उणी रोइज नाम मुक्ति, निर्वाण पर मोक्ष है। ____मोक्ष प्राप्ति रा चार उपाय है-सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र अर तप री आराधना । ज्ञान सूतत्त्व गे जाणकारी हुवै । दर्शन सू तत्त्व पर सरचा वढं । चारित्र सू करमा नै रोक्या जागै अर तप सूअात्मा रै बध्योडा करमा रो क्षय हुने । इण चारु उपाय सूजीव मोक्ष प्राप्त कर सके । इण री साधना मे जाति, कुळ, नश आदि रो कांई बंधण कोनी । जो यातमा आपण पातम गुणां नै प्रकट कर लेवै वा मोक्ष री अधिकारी वण जागे । [२] प्रातमा भगवान महावीर पातमा नै अनादि, अनन्त अर अनासवान बताई । वार मत में प्रातमा इज प्रापरणे गुणां रो विकास कर परमातमा वरण जावै। वीजा दार्शनिकां री मान्यता है के प्रातमा परमातमा रो इज अंस है। वारै मुताविक जियां आग सू"एक चिनगारी छिटक र न्यारी हुय जावै अर पाछी आग में मिल जावै, उणीज भांत पातमा पर परमातमा रो सम्बन्ध है । पण भगवान महावीर आतमा रो स्वतंत्र अस्तित्व मानियौ पर कयो-प्रातमा जद करम मळ रो नास कर'र निर्विकार हुय जावै तद वा खुदइज परमातमा बरण जाई।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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