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________________ पाप अर पुण्य दोन्यू हेय है। युभ-असुभ ने छोड़'र सुद्ध वीतराग भाव मै रमण करणोइज अध्यात्म रो लक्ष्य है। ५. प्रास्त्रव तत्त्व : पुण्य-पाप रूप करमा रै श्रावण रो रास्तो प्रास्रव कहीजै । नवरा पांच भेद इण भांत है- (१) मिथ्यात्व, (२) अविरति, (३) प्रमाद (४) कपाय अर (५) योग। मिथ्यात्व रो अरथ है विपरित सरधा राखणी, तत्व ज्ञान नीं हुवरणो। इण में जीव जड पदारथा में चेतना, अतत्त्व में तत्त्व, अधरम में धरम वृद्धि प्रादि विपरीत भावना री प्ररूपणा करै। अविरति रो अरथ हव-त्याग री भावना रो अभाव, त्याग में अरुचि, भोग मे मुख पर उत्साह री भावना। प्रमाद गे अग्थ है-पातम कल्याण खातर आच्छा काम करण री प्रवृत्ति में उत्साह नी हवरणो, आलस्य, मद्य, मांस आदि रो सेवन करगो। वपाय रो अरथ है-क्रोध, मान, माया, लोभ री प्रवृत्ति । योग रो अरथ है-मन, वचन काया री शुभाशुभ प्रवृति। योग दो भांत रा हुदै । सुभयोग पर असुभ योग । सुभ योग सूपुण्य रो बंध हुवै अर असुभ योग सूपाप रो। ६. बंध तत्त्व . सुभ-असुभ करम जद प्रातमा रै सागै चिपक जागै तद वा अवस्था वध कही । औ बंध चार भांत रा हुवै-(१) प्रकृति बंध, (२) स्थिति वध, (३) अनुभाग बन्ध अर (४) प्रदेस बन्ध । प्रकृति बंध करमा रै सभाव नै निश्चित करें। स्थिति बंध करमा र काळ रो निश्चय कर । अनुभाग बंध करमा रो फळ निश्चित
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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