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________________ संपदायें और दूसरी भी संपदाएं सामने आकर हाजिर हुई हैं। अब तुम सब स्वर्ग राज्यके स्वामी होवो और अपने पुण्यसे अनुपम सव संपदाओंको ग्रहण करो। KI इत्यादि मंत्रीके वचन सुनकर उसी समय अवधि ज्ञानसे पूर्व जन्मका वृत्तांत जानकर वह बुद्धिमान् अच्युतेंद्र धर्मका साक्षात् फल देखकर जिन भगवान् कथित धर्ममें । तत्पर हुआ पूर्व भवके सूचक ये वचन कहता हुआ।अहो मैंने पहले जन्ममें निष्पाप घोर ।। तप किया था और दुर्वलोंको भय देनेवाले शुभ ध्यान अध्ययन योग आदि किये थे। जगतकर पूज्य पंचपरमेष्ठीकी सेवा की और रत्नत्रयकी शुद्धिके लिये उत्कृष्ट भावनाओंका चितवन किया था। मैंने विषयरूपी वन जलादिया था,कामदेव आदि वैरियोंको मारा था और कपाय-18 रूपी वैरी तथा परीपहोंको जीता था। पहले मैंने सव शक्तिसे उत्तम क्षमाआदि दशलाक्षणिक धर्म पाला था, उसीने अब इस इंद्रपदपर मुझे स्थापित किया है । अथवा ये अनुपम सब स्वर्गका राज्य सब सुखों को देनेवाले धर्मका ही महान फल है। इसलिये तीन लोकमें। धर्मके समान कोई दूसरा वंधु [ हितू ] नहीं है। ये धर्म ही संसार समुद्रसे रक्षा करनेवाला हे और सब वांछित अर्थीका साधनेवाला है। मनुष्योंको धर्म ही साथ देनेवाला है, धर्मही .. पापरूपी वैरीका नाश करनेवाला है, धर्म ही स्वर्ग मोक्षको देनेवाला है और धर्म ही सब ।। ६जीवोंको सुख करनेवाला है । ऐसा समझकर सुख चाहनेवाले बुद्धिमानोंको सब
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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