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________________ म. वी. ॥२९॥ विवाहित हुई । बत्तीस हजार मुकुट बन्ध राजा इस चक्रीकी आज्ञाको शिरपर धारते हुए इसके चरणकमलोंको नमस्कार करते हुए । इसके जल्दी चलनेवाले चौरासी करोड़ पैदल पुरुष थे और सोलह हजार गणवाले देव थे । अठारह हजार म्लेच्छराजा इसके चरणकमलोंको सदा सेवते थे | सेनापति १ स्थापित २ स्त्री ३ हर्म्यपति ४ पुरोहित ५ हाथी ६ घोड़ा ७ दंड ८ च ९ चर्म १० काकिणी ११ मणि १२ छत्र १३ असि १४ ये चौदह रत्न देवोंकर रक्षित उस प्रभुके थे । पद्म ९ काल २ महाकाल ३ सर्वरत्न ४ पांडुक ५ नैसर्प ६ मा - णच ७ शंख ८ पिंगल ९-ये नौ निधियां देवोंकर रक्षित पुण्यके उदयसे उस चक्रवर्तीके घरमें भोगउपभोगकी सब सामग्रीको तयार करती हैं। पु. भा. अ. ५ 1 छयानवे करोड़ ग्राम और दूसरी योग्य संपदाएं इस चक्रीके पुण्यके उदयसे सुखदायी होती हुई | मनुष्यदेवोंसे पूजित वह चक्रवर्ती दशांगभोगकी सामग्री भोगने लगा | आचार्य कहते हैं कि इस जीवको धर्मसे सव मनोरथोंकी सिद्धि होती है, अर्थ पुरुषार्थ से महान् इन्द्रियसुखरूप काम पुरुषार्थकी प्राप्ति होती है और अर्थ काम दोनोंके त्यागसे धर्मद्वारा मोक्षकी प्राप्ति होती है। ऐसा जानकर बुद्धिमान वह चक्री हमेशा ॥ २९ ॥ मनत्रचनकाय कृतकारितअनुमोदनासे उत्तम धर्मको सेवता हुआ । शंकादि दोषरहित
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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