SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन्न्न्ल स्वर्गसे चयकर प्रियमित्र नामका पुत्र हुआ वह सव लोकको प्यारा लगने लगा। . उसके पिताने पुत्रजन्मकी खुशीमें सवको कल्याण करनेवाली अहंत भगवानकी महानपूजा कराई और चार प्रकारका दान देता हुआ अनेक प्रकारके बाजे बजवाता हुआ क्रमसे। वढता हुआ वह कुमार कीर्ति शोभा और भूषणोंसे देवोंके समान शोभायमान होता हुआ। उसके बाद वह कुमार धर्मपुरुषार्थकी सिद्धिके लिये जैनगुरुके पास जाकर धर्मको ४ वतलानेवाली श्रेष्ठ विद्याको पढता हुआ और साथमें राजविद्या भी सीखीं। जवान अवस्था है, होनेपर महामंडलेश्वर लक्ष्मीसहित पिताके पदको (राज्यको) पाकर सुख भोगने लगा है। तव उस समय इसके अद्भुत पुण्यके उदयसे स्वयं चक्रादि सव रत्न और उत्तम नौ निधियाँ | IS उत्पन्न हुई। उसके बाद उत्कृष्ट संपदा होनेसे छह अंगवाली सेनाकर सहित वह चकी छहों खंडोंमें भ्रमण करता हुआ मनुष्य विद्याधरोंके स्वामियोंको तथा मागधादि व्यन्तर देवोंके , १. स्वामियोंको अपने चक्रसे वशमें करके उनसे कन्या वगैरः सार वस्तुओंको लेता हुआ ६ इंद्रके समान शोभायमान होने लगा। है फिर वहांसे लौटकर वह चक्रवर्ती इंद्रपुरीके समान अपनी नगरीमें मनुष्य विद्याअधर व्यंतर देवोंके स्वामियों के साथ बहुत हौ सहित प्रवेश करता हुआ । इस चक्रीके महान पुण्यसे भूमिगोचरी व विद्याधरोंकी छयानवै हजार राजकन्या रूपलावण्यवाली ज - -
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy