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________________ सा Ge ची. दिव्य शरीरका धारी यौवन अवस्थाको प्राप्त होगया । वह देव उसी समय अवधि-18 पु. भा. ज्ञानसे पहलेधर्म करनेसे प्राप्त हुई अपनी महान विभूतिको जानकर धर्मकी सिद्धिके ? ॥२८॥ लिये श्री जिनमंदिर में जाकर सवको कल्याणकरनेवाली जिनराजकी परम पूजा जलादि । अ.. अष्ट द्रव्यसे करता हुआ। फिर मध्यलोकके जिनचैत्यालयोंकी पूजा करके और जिनेंद्रकी वाणी सुनकर श्रेष्ठ पुण्यका उपार्जन करता हुआ । इसमकार धर्ममें चित्त लगानेवाला वह देव चार हाथ ऊंचां शरीर व सोलह सागरकी आयु पाता हुआ। शुभ परिणामोंवाला वह देव अपने अवधिज्ञानसे चौथी नरककी पृथ्वीतक मूर्तीक वस्तुओंको जानता हुआ और वहींतक विक्रियाशक्तिको प्रगट करता हुआ। सोलह हजार वर्षके बीत जानेपर कंठमें झरनेवाले अमृतका आहार करता हुआ। सोलह पक्षके वीतनेपर सुगंधमयी श्वास लेता था। इस प्रकार वह देव पूर्व किये तपश्चर-12 &णके फलसे उत्पन्न दिव्य भोगोंको अपनी देवियोंके साथ हमेशा भोगता हुआ धर्म-1) सध्यानमें लीन सुखसमुद्रमें मग्न होता हुआ। । अथानंतर धातकी खंड द्वीपके पूर्व विदेहमें पुष्कलावती देश है, वहां पुंडरीकिणी नगरी है, वह हमेशा चक्रवर्तीकर भोगी जाती है । उसका स्वामी सुमित्र नामा राजा था और उसकी शीलवतवाली सुव्रता नामकी रानी थी । उन दोनोंके वह देव महाशुक्र ब्ब्ब्न्न्मन्मन्ब्ब्ल 68800000000000 ॥२८॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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