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________________ चक्रवर्ती पदकी प्राप्ति होती है उसे धर्म जानो । जो धर्म केवलीका उपदेशा हुआ है। S: अहिंसास्वरूप है निष्पाप है इसके सिवाय दूसरा कोई धर्म नहीं है। वह धर्म आहंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य परिग्रहत्याग ईयो भाषा एषणा आदान निक्षेपण उत्सर्ग मनगुप्ति वचनगुप्ति कायगुप्ति-इस तरह तेरह प्रकारका है उसे वीत४. रागी मुनि ही धारण करते हैं । अथवा सव मूलगुणरूप तथा उत्तम क्षमादि दश स्वरू-13 शप परम धर्मको, मोह इन्द्रियरूपीचोरोंको जीतनेवाले योगी धारण करते हैं। इसलिये है। बुद्धिमान तू भी इस मुनि धर्मको धारण कर और कुमार ( तरुण ) अवस्थामें ही शीघ्र काम क्रोधादि वैरियोंको तपरूपीतलवारसे मार । चित्तमें धर्मको ही रख, धर्मसे अपनेको शोभायमान कर, धर्मके लिये ही घर वगैरःको छोड़, धर्मके सिवाय दूसरा आचरण मत ६ कर, धर्मकी शरण ले, हमेशा धर्ममें ही स्थिर रह और हे धर्म मेरी सब तरफसे रक्षा करो-ऐसी प्रार्थना कर। बहुत कहनेसे क्या लाभ है । अव तू शीघ्रही सवतरहसे मोहरूपी महान जोधा& को मारकर मुक्तिकेलिये धर्मको ही अंगीकार कर । इस प्रकार सत्यधर्मकी सूचना करनेवाले उन मुनिके वचनोंको सुनकर संसार, शरीर, स्त्री आदि भोगोंसे वैराग्य होके है वह ऐसा विचार करने लगा-देखो पराया हितचाहनेवाले ये मुनिमहाराज मेरे हितका Moswwwसलन्छ
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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