SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥२३॥ कलाओंका अभ्यास करके रूप लावण्य कांति वगैरः गुणोंसे देवके समान शोभायमान होता हुआ। उसके बाद जवान अवस्था होनेपर इसका मामा हर्षके साथ कनकावती नामकी । अ.४ कन्याको गृहस्थ धर्म पालने के लिये विवाहविधिसे देता हुआ । एक दिन वह कुमार है | अपनी स्त्रीके साथ महामेरु पर्वतपर क्रीड़ा करनेको तथा कल्याणके लिये जिनालयोंकी है। पूजा करनेको गया था। वहांपर आकाशगामिनी आदि ऋद्धियोंवाले अवधिज्ञानी मुनीश्वरको देख उनकी तीन परिक्रमा देके प्रणाम कर धर्मका चाहनेवाला वह कुमार है। धर्मकी प्राप्तिके लिये पूछता हुआ। हे भगवन मुझे निदोप धर्मका स्वरूप बतलाओ कि जिससे मोक्ष मिलसके । वह योगी उस कुमारके वचन सुनकर इस प्रकार उसको हितकारी वचन कहता हुआ, हे बुद्धिमान तू एक चित्त होकर सुन, मैं तुझे धर्मका स्वरूप कहता हूं । संसारसमुद्रमें डूबते स हुए भव्यजीवोंको निकालकर जो मोक्षस्थानमें रखे अथवा तीन जगतका स्वामी वनावे । उसीको वास्तवमें धर्म समझो । जिससे इस भवमें तो पुरुपोंको संपदाकी प्राप्ति और 4मनोकामनाओंका पूरा होना व दुःखादिका नाश होता है तथा तीन लोकमें तारीफ है ॥२३॥ : होती है, और परभवमें देव राजा आदिकी विभूति सर्वार्थ सिद्धि तीर्थकरपना बलभद्र है।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy