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________________ ॥२४॥ कारण कह रहे हैं इसलिये मैं भी मोक्षकेलिये शीघ्र श्रेष्ठ तपको ग्रहण करूं । क्योंकि यह ? पु. भा. ६ नहीं मालूम पड़ती कि मनुष्यकी मौत कब होगी। वह काल गर्भमें तिष्ठे हुए अथवा पैदा हुए बच्चोंको भी मार डालता है तो उसका भरोसा नहीं है । वह यमराज अहमिंद्र देवेंद्र । हैं आदि महान पुण्यात्माओंको जब समय आनेपर वहाँसे पटक देता है तब हीन पुण्यी हम, } लोगोंकी जीवन वगैरः की क्या आशा ? न जानें किस समय हमको कालके गालमें । है जाना पड़े। ४ वुड्ढे होनेपर भी धर्मको करते ही जाना छोड़ना नहीं, जो मूर्ख धर्म नहीं करते हैं | वे पापका भार लेकर यमराजके मुखका ग्रास होकर नरकादि खोटी गतियोंमें चले। जाते हैं । इसलिये बुद्धिमान् पुरुपोंको सव अवस्थाओंमें (हालतोंमें ) प्रतिदिन धर्मसेवन करना चाहिये । और अपने मरणकी शंका करके कोई भी समय धर्मके सिवाय व्यर्थ है है न जाने देना चाहिये। __इसप्रकार चित्तमें विचार कर · वह बुद्धिमान वाह्य और अंतरंग दोनों तरहके परिग्रह। १ छोड़के तथा अपनी स्त्रीको पिशाचिनीकी तरह छोड़ मुनिके चरणकमलोंको । ४ नमस्कार करता हुआ मनवचन कायकी शुद्धि रखकर तीन जगतसे नमस्कार । ॥२४॥ है कीगई ऐसी जिनदीक्षाको मुक्ति के लिये धारण करता हुआ। जो जिनदीक्षा स्वर्ग तथा amonanesacarxaamanandome
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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