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________________ म.वी चौथा अधिकार ॥ ४॥ श्रीमते मुक्तिनाथाय स्वानंतगुणशालिने । महावीराय तीर्थशे त्रिजगत्स्वामिने नमः॥१॥ । भावार्थ-अंतरंग बहिरंग लक्ष्मीवाले, मुक्तिके नाथ, आत्मीक अनंत गुणोंसे शोभा-18 ४ यमान, तीन जगतके स्वामी ऐसे श्री महावीर स्वामीको मैं नमस्कार करता हूं। १ अानंतर वह त्रिपृष्ठ नारायण नारकी अपनी आयुके पूर्ण होनेपर नरकसे है ? निकलकर वनिसिंह नामा पर्वत पर पापके उदयसे सिंह होता हुआ। वहां पर भी उसने ? हिंसादि महा पापकार्योंसे महान् पापोंको उपार्जन किया और उनके उदयसे फिर भी निंदनीक रत्नप्रभा नामकी पहले नरककी पृथ्वीपर जन्म लेता हुआ। वहां पर एक 5 सागरतक महान् दुःखोंको भोगकर उसके बाद वहांसे चयकर अशुभ कर्मके उदयसे. इसी जंबूद्वीपके भरत क्षेत्रमें सिद्धकूट की पूर्वदिशामें हिमवान पर्वतकी शिखरपर तीखी। ६ डाढोंवाला मृगोंको खानेवाला सिंह होता हुआ। १ किसी समय आकाशमार्गसे जाते हुए चारण ऋद्धिधारी अजितंजय नामा मुनिने ॥१९॥ ... एक हरिणको खाते हुए उस सिंहको देखा। कैसा है मुनि, भव्यजीवोंके हित करनेमें ।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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