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________________ उद्योगी है, अनेक गुणोंका समुद्र है और आकाशमार्गगामी अमितगुण नामा मुनिके साथमें है । वह चारणमुनि तीर्थकरके वचनोंको याद कर कृपाकरके आकाशसे पृथ्वीपर उतर शिलाके ऊपर बैठ गया । फिर उस सिंहसे हित करनेवाले वचन कहता हुआ कि हे मृगपति भव्य ! हितकारी मेरे बचनोंको तू सुन । तूने पहले भवमें शुभकर्मके उदयसे त्रिपृष्ठ नारायण होके सव इंद्रियोंको तृप्त करनेवाले सुंदर भोग भोगे । अति सुंदर स्त्रियों के | साथ रमण करता हुआ तीनखंडकी पृथ्वीका स्वामी हुआ । परंतु विपयोंमें केवल फंस - जानेसे श्रेष्ठ धर्मकी तरफ कुछभी ध्यान नहीं दिया । उस महान् पापके उदयसे विषयांध | होकर मरण करके तू सातवें नरकमें गया । वहांपर खारे जलयुक्त दुर्गंधवाली वैतरणी नदीमें तुझे पापी नाराकियोंने पटक दियाथा और परस्त्रीसंगके पापसे उसके बदले अग्नि से तपाई हुई लोहकी पुतली तेरे अंगसे वार २ लिपटाई थी तथा कर्ण ओठ नाक वगैरः अंगों को काट डालाथा । 6000 जीवहिंसा के पाप से तेरे तिल २ भरके टुकडे कर डाले थे तथा तुझे शूली पर चढाया था इत्यादि अनेकप्रकार दुःखोंसे जब पीडित हुआ, तव तूने शरण की इच्छाकी सो वहां कोई सहायक नहीं मिला। फिर आयुके पूर्ण होनेपर नरकसे निकल कर्मरूपी वैरियोंकर घिरा - 2000.00%20%D9 .
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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