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________________ शरीर और भोगोंसे वैराग्यको प्राप्त होता हुआ । वह बलभद्र अतिकठिन दोनों तरहक 1 शतप करता हुआ ध्यानरूपी तलवारसे समस्त कर्मरूपी शत्रुओंको जीत अनंतज्ञान अनंताला शादर्शन अनंत सुख अनंत बलरूप अनंत चतुष्टयको पाकर देवॉकर पूजित हुआ अनंत || सुखका समुद्र बाधरहित अनुपम सब जीवोंकर नमस्कार करने योग्य मोक्षपदको पाता हुआ। | इसप्रकार श्रेष्ठ चारित्र (आचरण) पालनेसे भोगोंको भोगता हुआ भी एक बलभद्र तो मोक्षको गया और दूसरा नारायण खोटे आचरणसे उत्पन्न पापके, उदयसे || अंतके पातालछिद्रमें (नरकमें) गया । इसलिये हे बुद्धिमान भव्यजीवो श्रेष्ठ चारित्रका) पालन करो जिससे कि सुखकी प्राप्ति हो। इसप्रकार श्रीसकलकीर्ति देवविरचित महावीरपुराणमें चार स्थूलभवोंका कहने वाला तीसरा अधिकार पूर्ण हुआ ॥ ३ ॥ दलहरखडलटन्छ -
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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