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________________ होते हुए। | अथानंतर इसी भरत क्षेत्रके विजयापरवतकी उत्तर श्रेणीमें अलका नाम पुरीमें मयूर ग्रीव राजा और उसकी नीलंजना रानी थी। उन दोनोंके वह विशाखनंदका जीव बहुत कालतक संसारसमुद्रमें भटकता हुआ स्वर्गसे चयकर कुछ 'पुण्यके उदयसे अश्वजाग्रीव नामका पुत्र हुआ । वह बुद्धिमान् तीन खंड पृथ्वीका स्वामी अर्धचक्री, देवोंकर सेव्य तथा प्रतापी भोगोंमें लीन होता हुआ। उसी विजयार्धकी उत्तरश्रेणीके रथनूपुर-113 देशमें चक्रवाल पुरी थी । उस नगरीका स्वामी ज्वलनजटी था वह पुण्यके उदयसे चरम||२|| शरीरी तथा अनेक विद्याओंकर शोभायमान था । Mar उसी पर्वतके रमणीक द्युतिलक नामके नगरमें चंद्राभ नामका विद्याधरोंका स्वामी था और उसकी सुभद्रा नामकी प्यारी स्त्री थी। उन दोनोंके वायुवेगानामकी महारूपवाली पुत्री उत्पन्न हुई । जवान होनेपर ज्वलनजटीके साथ उस पुत्रीका विवाह हुआ। उन दोनोंके सूर्यके समान तेजस्वी 'अर्ककोति' नामका पुत्र और मनोज्ञरूपवाली व शुभा परिणामोंवाली 'स्वयंप्रभा' नामकी पुत्री हुई । एक दिन वह विद्याधरोंका राजा अपनी
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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