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________________ म.वी 8 उसी दशवें स्वर्गमें देव हुआ कि जहाँपर श्रेष्ठ मुनि विशाखभूति देव हुआ था। वहां सोलह 8 पु. भा. ६ सागरकी आयु उन दोनोंने पायी । ऐसे वे दोनों उत्तम देव सात धातु रहित दिव्य॥१४॥ १ शरीरको धारण करते हुए । और विमानोंमें बैठकर सुमेरु पर्वत तथा नंदीश्वरादि द्वीपोंमें है है श्रीजिनेन्द्रदेवकी भक्तिभावसे पूजा करते हुए तथा भगवान्के गर्भादि पंचकल्याणकके है ४ महोत्सवमें जाते हुए । अपने पूर्वतपके फलसे सब असातारूप दुःखोंसे रहित अपनी है ४ देवियोंके साथ हर्षसहित अनेक तरहके भोग भोगते हुए वहां रहते हुए। अथानंतर इसी जंबूद्वीपमें सुरम्यदेश है उसमें शुभनामवाला पोदनपुर नगर है। ? उसका कल्याणकारी प्रजापति नामका राजा और उसकी जयावती रानी थी। इन ? ? दोनोंके घर वह विशाखभूतिराजाका जीव देवता स्वर्गसे आकर विजयनामका वलभद्र । 2 हुआ और विश्वनंदिका जीव वह देव स्वर्गसे चयकर उसी राजाकी मृगावती रानीके। त्रिपृष्ट नामका महावलवान् पहला नारायण हुआ। चंद्रमाके समान तथा नीलमणिके । १ समान वर्णवाले वे दोनों भाई अनेक कलाओंमें चतुर, न्यायमार्गमें लीन, प्रतापी, शास्त्रोंके । जाननेवाले, भूमिगोचरी, विद्याधर तथा देवोंकर वंदनीक, महान् विभूतिकर पूर्ण अमूल्य है दिव्य आभरणों (गहनों) से शोभायमान, क्रम २ से जवान अवस्थाको प्राप्त हुए । पूर्व है ॥१४॥ । किये हुए महान् पुण्यके उदयसे महान् उदयको प्राप्त, सुंदर भोग उपभोग सामग्रीके है
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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