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________________ म. वी. ॥१५॥ पुत्रीको पूर्ण यौवनवाली तथा धर्ममें लवलीन देख संभिन्न श्रोतृ नामक निमित्तज्ञानीको बुलाकर पूछता हुआ कि इस पुत्रीका कोनसा पुण्यवान् पति होगा । ' उस राजाके प्रश्नको सुनकर वह निमित्तज्ञानी बोला, हे महाराज पहले अर्धचक्री नारायण (त्रिपृष्ट) की यह तेरी पुत्री पटरानी होगी । और विजयार्धकी दोनों श्रेणीका राज्य वह तुझे दिलवावेगा । तव तू विद्याधरोंका स्वामी होगा । इसमें कुछ संदेह मत कर। इस प्रकार उस निमित्तज्ञानीके श्रेष्ठ वचनोंका निश्वयकर इंद्र नामा मंत्रीको बुलाकर पत्र लिखवाता हुआ। वह लिखितपत्र उस मंत्री को देकर उसे पोदनपुरको भेजता हुआ । वह मंत्री दूत आकाशमार्गसे शीघ्र ही पुष्पकरंडक वनमें पहुंचा | पु. भा. अ. ३ इधर त्रिपृष्ट भी किसी निमित्तज्ञानीके वचनोंसे पहले ही सव आगमनकी बात जानकर उस दूतके लेनेके लिये हर्षके साथ सामने आया । उस दूतको बहुत आदरसे पोदनाधिपतिके पास ले आता हुआ। वह पौदनपुरेश्वरको मस्तक नवाकर उस लिखे हुए पत्रको देके अपने योग्य स्थानपर बैठ गया । पत्रके भीतर मोहर ( छाप ) देखकर "यह किसी मुख्यकार्यकी सूचक है' ऐसा विचारता हुआ वह पत्र खोलके वांचता हुआ । उसमें ऐसा लिखा हुआ था - पवित्र बुद्धि, न्यायमार्ग में सदालीन, महाचतुर नमिराजाके वंशमें सूर्य के समान ऐसा विद्याधरोंका पति ज्वलनजटी रथनपुर शहरसे, ऋषभ देवसे 2 ॥१५॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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