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________________ चतुर शुभलक्षणोंवाला प्रसिद्ध हो गया । विश्वभूति राजाके बड़ा प्यारा विशाखभूति नामका छोटा भाई था, उसकी लक्ष्मणा' नामकी स्त्री थी उनके भी 'विशाखनंद नामवाला दुष्टबुद्धि पुत्र हुआ। एक दिन निर्मल बुद्धिवाले 'विश्वभूति' राजा शरदऋतुके ६ वादलोंको देख संसारसे वैराग्य चित्त हुए ऐसा विचारने लगे। देखो जैसे यह बादल || | क्षणमात्रमें ही विलाय गया-नष्ट हो गया, उसी तरह मेरी भी कभी आयु तथा यौवनादि। ४ संपदा सव नष्ट हो जायगी। इसमें संशय नहीं है। इस लिये जबतक यौवन आयु वलादि ४ सामग्री क्षीण न हो जावे तबतक मोक्षके लिये निष्पाप तप अवश्य करना चाहिये ।। * इत्यादि विचार करनेसे संसारके भोगोंसे विरक्त हुआ दीक्षाके लिये उद्यमी होता हुआ। उसी समय वह श्रेष्ठ नृप अपने छोटे भाईको विधिपूर्वक राज्य देता हुआ और & अपने पुत्रको युवराजका पद दिया । फिर वह राजा घरसे निकल जगत्से बंदनीक श्रीधर मुनीश्वरको मस्तक नवाकर और वाह्य अंतरंग परिग्रहोंको छोड़ वैरागी तीनसौ राजाओंके साथ मन वचन कायकी शुद्धिपूर्वक देवोंको दुर्लभ ऐसे संयमको मुक्तिके लिये उन मुनीश्वरसे ग्रहण करता हुआ । उसके बाद वह संयमी ध्यानरूपी तलवारसे 3. हा इंद्रिय और मोहको जीतकर कर्मोंके नाश करनेवाले घोर तपको करता हुआ। एक दिन अपने रमणीक वनमें वह विश्वनंदी अपनी रानियोंके साथ क्रीडा PM
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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