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________________ पु. भा. म. वी. ४ करता हुआ बैठा था इतनेमें विशाखनंद उस विश्वनंदीको रमणीक वनमें बैठा देख १ अपने पिताके पास आकर वोला । हे पिता विश्वनंदीका वगीचा मुझे देना चाहिये ॥१२॥ नहीं तो मैं नियमसे परदेशको निकल जाऊंगा। ऐसा पुत्रका वचन सुनकर मोहसे अ.३ है वह राजा बोला, हे पुत्र अभी तू धीरज रख मैं तुझे शीघ्र ही किसी तरकीबसे वर्गीचेको दिलवाऊंगा। एक दिन वह राजा मायाचारीसे विश्वनंदीको बुलाकर ऐसा बोला हे 18 भट आज यह राज्यभार ग्रहण कर और मैं अपने प्रांतवासी राजाओंद्वारा किये गये १ उपद्रवोंको शांत करनेके लिये तथा अपने देशको सुखकी प्राप्तिके लिये उन राजाओंपरा है चढाई करता हूं। है. ऐसा वचन सुनकर वह विश्वनंदी कुमार वोला, हे पूज्य तुम तो यहां सुखसे ? वैठो और मैं तुमारी आज्ञासे आपका सब काम पूरा करूंगा। इस प्रकार उस राजाकी , आज्ञा लेकर वह महा बलवान् विश्वनंदी अपनी सेनाके साथ दुश्मनोंके जीतनेको जाता हुआ। उसके जानेके बाद वह राजा अपने पुत्रको वगीचा देता हुआ । आचार्य कहते । , हैं कि इस मोहको धिक्कार होवे जिससे कि अशुभ काम यह माणी कर डालता है। । वगीचेके रक्षकसे भेजे हुए दूतसे यह बात जानकर महाधीर वीर विश्वनंदी मनमें ऐसा । विचारता हुआ कि देखो आश्चर्यकी बात मेरे काकाने मुझे वैरियोंके प्रति भेजकर ऐसी ॥१२॥ ए दगाबाजी की जो कि प्रेम तथा राज्यका नाश करनेवाली है।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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