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________________ लेकिन उनके चित्तमें चरित्र धारण करनेकी भावना नहीं थीं। वे जगत्के गुरु श्री ऋषभदेव देहसे भी ममता छोड़कर सुमेरूपर्वतके समान निश्चल कर्मरूपी वैरियोंके जीत- । नेको उनसे मुक्त होनेके लिये छह महीनेकी परम समाधि लगाते हुए । जिन्होंने अपनी । भुजाओंको दंडके समान लंवायमान कर दिया है। । तदनंतर वे कच्छ मरीचि आदि क्षुधा प्यास वगैरः कठिन परीपहोंको उस स्वागीके |साथ कुछ दिनोंतक सहन करके पीछे सहनेको असमर्थ हुए। केशके भारसे घिरे हुए धैर्यरहित है 'दीन मुख करके आपसमें ऐसे बातचीत करते हुए कि देखो यह जगतका स्वामी वज्रके समान ? ||शरीरवाला न मालूम कव तक ऐसा खड़ारहेगा। हमलोगोंको इसके साथमें रहनेसेमाण जानेका || || भय है । इसकी वरावरी करनेसे क्या हमें मरना है. ? । ऐसी आपसमें वार्तालाप । करके वे भेषधारी उस भगवान्के चरणकमलोंको नमस्कार कर भरतराजाके भयसे। अपने घर जानेको असमर्थ उसी वनमें वे धूर्त (मूर्ख ) पापके उदयसे स्वच्छंद हुए। हा फल भक्षण करनेको तथा जल पीनेको उद्यमी होते हुए । मरीचि भी हा उनके साथ परीपहोंकर दुःखित वैसा ही करने लगा । ऐसे निंदनीक है। हा काम करते हुए उनको देखकर वनका रक्षक देव वोला । हे धृतों मेरे शुभ वचन। तुम सुनो, इस पवित्र मुनिभेपसे जो मूर्ख निंद्य अशुभ काम करते हैं वे पापके उदयसे नरकरूपी
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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