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________________ म. वी. यमान विमानोंमें देवोंके समान रहते थे और देवियों के समान स्त्रिया मालूम हो । ती थीं। जिसनगरीमें देव भी मोक्षके लिये जन्म लेनेको तरसते थे ऐसी स्वर्गमोक्षकी। ॥७॥ देनेवाली नगरीकी प्रशंसा कैसे होसकती है । जिस नगरीका स्वामी चक्रवर्तियोंमें । पहला आदिसृष्टिकर्ता ( कर्मभूमिकी प्रवृत्ति करानेवालो) श्री ऋषभदेवका पुत्र राजा भरत था। जिस भरतचक्रीके चरणकमलोंको अकंपनादि राजा, नमि आदि विद्याधर राजा, मागध आदि देव हमेशा नमस्कार करते थे । ऐसे छह खंडके स्वामी चरमशरीरी पुण्यवान्को सुखके देनेवाली पुण्यवती धारिणी नामकी पटरानी होती हुई । वह सुंदर लक्षणोंवाली थी। इन दोनोंके वह देव पुरूरवा भीलका जीव स्वर्गसे चयकर 'मरीचि नामका रूपादिगुणोंवाला पुत्र उत्पन्न हुआ। वह क्रमसे बढता हुआ । जब योग्य हुआ तब अनेक शास्त्रीको पढ़कर और अपने योग्य संपदाको पाकर वनादिमें क्रीडा करने लगा। - किसी समय श्रीऋषभदेव देवांगनाके नृत्यको देख राज्यभोगसे विरक्त होते हुए । फिर पालकीमें बैठकर लौकांतिक देवोंक साथ वनमें जाकर बाह्य अभ्यंतर दोनों प्रकार परिग्रह छोड़ मोक्षके लिये संयम तपको धारण करते हुए। - उसी समय स्वामिभक्त कच्छ आदि चार हजार राजा मरीचि सहित है: ॥७॥ काल स्वामीकी भक्तिके लिये नग्नभेपरूपी द्रव्य संयमको धारण करते हुए।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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