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________________ 1 अंतरात्मा कहा जाता है। यहां बहुत कहनेसे क्या फायदा जिसका श्रेष्ठ मन उत्तम 19 विचारोंमें कसौटीके समान लगा हुआ है वोही परमज्ञानी है । ऐसा समझकर आत्मामें|| 18 सब तरफसे मूढ़ता छोड़ परमात्मपदको पानेके लिये अंतरात्माके पदको ग्रहण ( मंजूर ) 18 करना चाहिये । सकल विकलके भेदसे परमात्मा दो तरहका है जो दिव्य शरीरमें रहे || 1. वह अर्हतप्रभु सकल परमात्मा है और जो देह रहित हैं ऐसे सिद्ध भगवान् निष्कल 1 कहे जाते हैं। जो घातिया कर्मोंसे रहित हैं नव केवल लब्धिवाले मोक्षके इच्छुक तीन जगत्के मनुष्य देवाकर हमेशा ध्यान करनेयोग्य धर्मोपदेशरूपी हाथोंसे संसारसमुद्रमें डूबते हुए। ह भव्योंको निकालनेमें उद्यमी चतुर सर्वज्ञ महान्पुरुपोंके गुरु धर्मतीर्थके करनेवाले तीर्थ-16] 18 करस्वरूप वा सामान्य केवली स्वरूप सबसे वंदना किये गये दिव्य औदारिक शरीरमें । र विराजमान सब अतिशयोंसहित लोकमें स्वर्गमोक्षफलकी प्राप्तिके लिये धर्मरूपी अमृतकी ? 18 वर्षा हमेशा करनेवाले ऐसे परमात्मा ही सकल कहे जाते हैं । ये ही जगत्के नाथ || जिनेन्द्रदेव जिनेन्द्रपदके चाहनेवालोंको उस पदकी प्राप्तिके लिये दूसरेकी शरण न ॥११६॥ लेकर सेवा किये जाते हैं। जो सब कर्मोंसे तथा शरीरसे रहित हैं अमूर्त हैं ज्ञानमयी महान तीन लोकके शिख
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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