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________________ न्स ललललल |रपर रहनेवाले आठ गुणोंसे भूषित तीन जगत्के स्वामियोंसे सेवा किये गये ऐसे सिद्धी मोक्षके इच्छुकोंसे वंदने योग्य हैं । वेही महान् जगत्के चूडामणि निष्कल परमात्मा हैं । येही सबमें मुख्य सिद्ध परमेष्ठी मोक्षार्थियोंको मोक्षसिद्धिके लिये अतिनिश्चल मन करके हा हमेशा ध्यान करने योग्य हैं। भ्रमरहित हुआ योगी जैसे परमात्माका ध्यान करता है वैसे ही मोक्षस्वरूप पर-16 मात्माको पाता है । उत्कृष्ट बहिरात्मा पहले गुणस्थानमें कहा जाता है दूसरेमें मध्यम | और वह शठ तीसरे गुणस्थानमें जघन्य कहा गया है । जघन्य अंतरात्मा चौथे गुणस्थानमें उत्कृष्ट अंतरात्मा वारवें गुणस्थानमें कहा है जो कि अनंतकेवलज्ञानको प्राप्त करनेवाला है । इन दोनोंके वीचमें जो सात शुभ गुणस्थान हैं उनमें अनेक तरहका मध्यम अंतरात्मा है वही मोक्षके रस्तेपर खड़ा हुआ है । अंतके तेरवें चौदवें इन दोनों हा गुणस्थानोंमें परमात्मा है वह तीन जगत्के जीवोंकर सेवनीक सयोगी अयोगिरूप है। सिद्धपरमात्मा गुणस्थानसे रहित हैं। जो द्रव्यभाव प्राणोंसे जी चुका जी रहा है और जीवेगा इस लिये वही सार्थक हानामवाला जीव कहा जाता है। पांच इंद्रिय, मन वचन कायरूप तीन, आयु और उच्छास-16 निःश्वास ये संज्ञी जीवोंके दश प्राण हैं। बुद्धिमानोंने असंज्ञी जीवोंके मनके विना नौ लन्डन्न्छन्डन्सलन्डन्न्
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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