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________________ तो मोक्ष . पाते हैं कोई नवग्रैवेयक तथा सोलहवें स्वर्गमें जन्म लेते हैं । या कोई जिनदेवके भक्त सौधर्मादि स्वर्गके इंद्रपदको पाते हैं। कोई सुपात्रको|||| दान देनेसे भोगभूमिमें उत्पन्न होते हैं, कोई पूर्वविदेहादिमें जन्म लेकर राज्यलक्ष्मीको ? || भोगते हैं, जिस देशमें जगत्से पूज्य मुनि केवली धर्मोपदेश देते हुए चार प्रकारके संघके साथ विहार करते हैं। वह देश,ग्राम पत्तन नगरी ऊंचे२ जिनमंदिरोंसे शोभायमान था। जिसके हावन ध्यानारूढ योगियोंसे हमेशा फलोसहित रहते थे । इत्यादि वर्णनवाले उस देशके वीचोंबीच विनीता ( अयोध्या ) नामकी नगरी थी वह नगरी विनयवान् पुरुषोंसे 8 भरी हुई थी इसीलिये रमणीक जैसा नाम वैसे गुणको धारण करनेवाली थी। I जो नगरी श्री आदिनाथ (ऋपभदेव) तीर्थकरके जन्मके लिये इंद्रने रची थी और वह ऊंचे स्वर्णरत्नमयी चैत्यालयोंसे शोभायमान थी। वह अयोध्या ऊंचे २ परकोटा व दरवाजोंसे तथा बड़ी खाई ऐसी थी जिसको वैरी भी नहीं लांघ सकता । वह नव । योजन चौड़ी बारह योजन लंबी थी जो देवोंको अत्यंत प्रिय थी। ऐसी नगरीका: वर्णन वचनद्वारा नहीं हो सकता। जिसके ऊंचे २ महलोंमें ऐसे मनुष्य निवास करते थे। जो कि दानी कोमलचित्तवाले चतुर धर्मात्मा शुभ परिणामोंवाले सीधे सुरूप उत्तम आचरणवाले पूर्व उपार्जित पुण्यवाले अत्यंत धनाढ्य थे । वे सैकड़ों गुणोंसे शोभा-18
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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