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________________ म. वी. विमानमें महाऋद्धिधारी देव हुआ । उसने आयु एकसागरकी पायी अंतर्मुहूर्तमें नवयौ- पु. भा. वन अवस्थाको धारण करता हुआ । अवधिज्ञानसे पूर्वजन्मका वृत्तांत तथा व्रतादिका अ.२ Kा यह सव फल जानकर जिनधर्ममें अति प्रीति करता हुआ। वादमें धर्मकी सिद्धके लिये जिन चैत्यालयोंमें जाकर जिनेश्वरकी प्रतिमाओंकी परमपूजा करता हुआ। अपने परिवारके । साथ जलादि आठप्रकार द्रव्यसे गाना नृत्य स्तुतिके साथ चैत्यक्षोंमें स्थित तीर्थकरोंकी Pी पूजा करनेके वाद मेरु नंदीश्वरादि द्वीपोंमें जाकर जिनेन्द्रके केवलज्ञान व गणधरादि महात्माओंकी महामह नामकी पूजा भक्तिपूर्वक करता हुआ । बादमें गणधरोंके द्वारा दो। प्रकारका धर्म सुनकर बहुत पुण्यका उपार्जन करके अपने स्थानको वापिस आता हुआ। इसतरह वह देव अनेक प्रकारका पुण्य उपार्जन करके अपनी देवियों के साथ महल सुमेरुवनादिमें मनोहर गाने सुनता हुआ कहीं देवांगनाओंका शृंगार विलासमयी नृत्य देखता हुआ क्रीडा करने लगा । इत्यादि पूर्वपुण्यसे प्राप्त हुए परम भोगोंको भोगता हुआ। साजिसका शरीर सात हाथ ऊंचा सात धातुरहित था।वह मति आदि तीन ज्ञान, अणिमादि आठ ऋद्धियोंसे भूपित नेत्रोंकी टिमकार रहित इंद्रियसुखरूपी समुद्रमें मग्न होता हुआ। . इस भरतक्षेत्रमें आर्यखंडके वीचमें कोशल नामका देश है वह आर्यजनोंको ? क्तिका कारण है । जिस देशमें पैदा हुए भव्यजीव व्रतोंको धारण कर कोई 12.
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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