SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ POOM शिप्रगट करनेवाले मेरे सारभत वचन सुन । जिस धर्मसे तीन लोककी · लक्ष्मी प्राप्त || होती है, चक्रवर्तीकी विभूति तथा इंद्रपदभी जिस धर्मसे मिलता है । भोगोपभोग-1 की सामग्री मनोवांछित संपदायें और सुखको देनेवाले कुटुंबके लोकोंकी प्राप्ति जिस धर्मसे होती है वह धर्म, मद्य मांस मधु (शहत) के त्यागसे तथा पांच साउदुवरोंके छोड़नेसे और सम्यक्त्वके साथ अहिंसादि पांच अणुव्रतोंके पालनेसे तथा]|) तीन गुण व्रतचार शिक्षाव्रतोंके धारण करनेसे वारह व्रतरूप एकदेश गृहस्थका है उससे l स्वर्गादि लौकिक सुख मिलते हैं । इस प्रकार मुनिके उपदेशसे वह भीलोंका स्वामी मद्या मांसादि छोड़कर मुनीश्वरके चरणकमलोंको नमस्कार कर धर्मकी प्राप्तिके लिये श्रावकके वारह व्रतोंको उसी समय ग्रहण करता हुआ। जैसे ग्रीष्म ऋतुमें प्यासा मनुष्य जलसे || भरे हुए तालावको पाकर अति प्रसन्न होता है उसी तरह वह भील भी संसारके || ही दुःखोंसे डरके जिन धर्मको ग्रहण कर अति हर्षित हुआ। आचार्य महाराज कहते हैं कि | इस धर्मके लाभसे शास्त्रोंका अभ्यास, विद्वानोंकी संगति, निरोगता, धनवानपना-ये सब शा प्राप्त होते हैं। सो उस भीलने भी सव पाये। उसके बाद पवित्रात्मा वह भील मुनिको रास्ता || दिखलाकर हर्पित हुआ अपनी जगहको गया । सव व्रतोंको जन्मपर्यंत पालता हुआ अंतमें। समाधिमरण करके व्रतसे उत्पन्न हुए पुण्यके उदयसे वह भील सौधर्म नामके महाकल्प
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy