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________________ जानको लांघकर वे जिनपती बारवें गुणस्थानको पाकर केवलज्ञानके राज्यको स्वीकार । करनेके लिये उद्यमी हुए। या वे प्रभु बारवें गुणस्थानके अंतके दो समयोंमेंसे पहले समयमें निद्रा प्रचला इन। शादोनों कर्मोंका नाश शुक्लध्यानके दूसरे हिस्सेसे करते हुए । फिर वे जगत्के गुरु शुल्क-15 ध्यानके उसी दूसरे भागरूप बाणसे कपड़ेके परदोंके समान पांच ज्ञानावरणकर्म और वाकीके चार दर्शनावरण कर्मोंको और पांच अंतरायकर्मोंको इस तरह चौदह घातिया 8 हकर्मोको मार डालते हुए। इस प्रकार बारवें गुणस्थानके अंतके समम त्रेसठ कर्मोंका नाश करके तेरवें गुणस्थानमें केवलज्ञानको पाते हुए । कैसा है केवलज्ञान ? अंतरहित है | लोक अलोकके स्वरूपको प्रकाश करनेवाला है अनंतमहिमासहित है मुक्तिके राज्य पानेको कारण है। । वे जिनेश्वर श्रीमहावीर प्रभु वैशाखसुदि दशमीके दिन सांझके समय हस्त और उत्तरा नक्षत्रके वीचमें शुभ चंद्रयोगमें मोक्षका देनेवाला क्षायिकसम्यक्त्व यथाख्यातसंयम ( चारित्र ) अनंतकेवलज्ञान केवलदर्शन क्षायिकदान लाभ भोग उपभोग और क्षायिक-II वीर्य इन अनुपम नौ क्षायिक लब्धियोंको स्वीकार करते हुए। लन्डन्सलन्सल COCK
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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