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________________ म. वी. १९२॥ इस प्रकार घातिकर्मशत्रुके जीतनेवाले भगवानको केवलज्ञानलक्ष्मीकी प्राप्ति होने के प्रभावसे आकाशमें देव जय जय शब्द करते हुए और देवोंके दुंदुभि आदि बाजे वजने । लगे । देवोंके विमानोंसे आकाश ढंक गया। आकाशसे पुष्पोंकी वर्षा होने लगी । सब इंद्र परमभक्ति से उन प्रभुको प्रणाम करते हुए आठों दिशायें निर्मल होगई और आकाश भी निर्मल होगया । उस समय मंद सुगंध ठंडी पवन वहने लगी सब इंद्रोंके आसन कंपायमान होते हुए और अनुपमगुणोंके खजाने ऐसे श्रीमहावीर प्रभुकी भक्ति से यक्षोंका राजा कुवेरदेव शीघ्र ही समवसरणसंपदाकी रचना करता हुआ । इस प्रकार जो श्रीमहावीर प्रभु घातिकर्मरूपी वैरियोंको जीतकर अनुपम अनंत क्षायिक गुणोंको पाकर सब भव्यजीवोंको अत्यंत आनंद करता केवलज्ञानरूपी राज्यको स्वीकार करता हुआ । ऐसे भव्योंमें चूड़ामणिरत्नके समानं तीन लोकके तारनेमें चतुर श्रीमहावीर प्रभुको मैं उन गुणोंकी प्राप्तिके लिये स्तुति करता हूं || इस प्रकार श्रीसकलकीर्तिदेव विरचित महावीर पुराणमें भगवान् महावीरको केवलज्ञानकी उत्पत्ति कहनेवाला तेरवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १३ ॥ Clic पु. भा अ . १३ ॥९२॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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