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________________ पु. भा. GGR म. वी. महलको चढनेके लिये नसैनी ऐसी क्षपकश्रेणीपर चढकर कर्मरूपी वैरियोंके मारनेमें उद्यम करते हुए। ॥९॥ स्त्यानगृद्धिनामका दुष्टकर्म निद्रानिद्रा प्रचलापचला नरकगति तिर्यंचगति एकेंद्री दो इंद्री ते इंद्री चौइंद्रीरूप चार जाति अशुभ नरकगति-भायोग्यानुपूर्वी तिर्यग्गति प्रायो६] ग्यानुपूर्वी आतप उद्योत स्थावर सूक्ष्म साधारण इन सोलह कर्मरूपी वैरियोंको उत्तम है सुभटकी तरह मारते हुए। फिर वे महायोधा स्वामी पहले शुक्लध्यानरूपी तलवारसे ६। अपने आप अनियत्तिकरण नामके नौवें गुणस्थानके पहले भागमें ठहरते हुए। पुनः उसी गुणस्थानके दूसरे भागमें चारित्रकी घातक आठ कपायोंको, तीसरे भागमें नपुंसकवेदको । - चौथे भागमें स्त्रीवेदको पांचवें भागमें हास्यादि छहको छठे भागमें पुरुषवेदको सातवें भागमें संज्वलनक्रोधको आठवें भागमें संज्वलन मानको नवमें भागमें संज्वलनमायाको 5 उसी शुक्लध्यानरूपी हथियारसे नाश करते हुए। उसके बाद कर्मरूपी वैरियोंकी संतानको मारकर महावलवान् हुए वे महावीर जिन दशवें गुणस्थानकी भूमिपर चदके सूक्ष्म संज्वलनलोभको चौथे ध्यानसे मारकर क्षीणकपायी होते हुए । इस प्रकार काँका राजा मोहकर्मरूपी महान् शत्रुको सेनासहित || मारके वे महावीर प्रभु शूरोंमें मुख्य शोभायमान होने लगे । अथानंतर ग्यारवें गुणस्था ॥९ ॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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