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________________ होकर मोहरूपी कुएमें फंस जावे तो उसका ज्ञान पाना किसी कामका नहीं । अज्ञानसे | ( नहीं जानकर ) किया हुआ पाप ज्ञान होनेसे छूट जाता है लेकिन जो ज्ञानसे (जानकर) पाप किया जावे वह इस संसारमें किस चीजसे छूट सकेगा अर्थात् किसीसे नहीं । ऐसा ही समझकर ज्ञानियोंको प्राणोंके जानेपर भी मोह आदि निंदनीक कामोंसे कभी पाप नहीं करना चाहिये । क्योंकि मोहसे ही रागद्वेष होते हैं और रागद्वेषसे अत्यंत घोर पाप होता है तथा पापसे बहुतकाल तक दुर्गतियोंमें भटकना पड़ता है और भटकनेसे वचनसे नहीं कहा जावे ऐसा पराधीन होकर दुःख सहना पड़ता है। ऐसा जानकर ज्ञानियोंको पहले मोहरूपी शत्रु प्रकाशमान वैराग्यरूपी तलवारसे || मार देना चाहिये क्योंकि मोह ही सब अनर्थोंका करनेवाला दुष्ट है । वह मोह भी गृहस्थोंसे नहीं मारा जासकता इसलिये पापरूपी घरका बंधन दूरसे ही छोड़ देना चाहिये। सा क्योंकि गृहबंधन ही वालक अवस्थामें अथवा मदोन्मत्त जवान अवस्थामें सब अनर्थोंका हा करनेवाला है इसलिये धीर वीर पुरुष मोक्षकी प्राप्तिके लिये उस गृहबंधनको छोड़ी देते हैं । वे ही जगत्में पूज्य हैं वे ही महापुरुष धीर वीर हैं जो जवान अवस्थामें दुर्जय हा कामदेवरूपी वैरीको जीतते हैं। क्योंकि यौवन अवस्थारूप राजाने कामदेव और पंचेंद्रिय आदि चोर जीवोंका सललललल
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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