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________________ 88 म.वी. देखो अवतक इस संसारमें मेरे दिन चारित्रके विना अज्ञानीकी तरह वृथा गये है जो कि अब नहीं मिल सकते । पहले जमानेमें जो श्रीऋषभादि तीर्थकर होगये हैं उनकी ? आयु तो बहुत ज्यादा थी इससे वे सब कुछ कर सके थे और अब थोड़ी आयुवाले | ॥६८॥ | हमसरीखे संसारीक कार्य कुछ नहीं कर सकते । श्री नेमिनाथ वगैरः तीर्थकर धन्य हैं । | कि जो अपना जीवन थोड़ा जानकर शीघ्र ही कुमार अवस्थामें मोक्षके लिये तपोवनको चले गये । इस लिये इस संसारमें हितके चाहनेवाले थोड़ी आयुवाले पुरुषाकों संयम ( चारित्र) के विना एक क्षण भी वृथा नहीं जाने देना चाहिये । . जो थोड़ी आयु पाकर तपस्याके विना दिनोंको वृथा ही गँवाते हैं वे मूर्ख यम. राजसे भक्षण किये गये इस दुनियाँमें दुःख पाते हैं। परंतु यह बड़ा अचंभा है कि मैं , है तीनज्ञानरूपी नेत्रवाला आत्माका जाननेवाला भी संयमके बिना अज्ञानीकी तरह वृथा । हूँ ही गृहस्थाश्रममें रहकर काल विता रहा हूं । इस संसारमें तीन ज्ञान मिलनेसे क्या है है लाभ है जबतक कि आत्माको कर्मोंसे जुदा करके मोक्षलक्ष्मीका मुखकमल न देखा है १ जाय । ज्ञान पानेका उत्तम फल उन्हीं पुरुपोंको है जो निष्पाप तपका आचरण करते है हैं, । दूसरोंका ज्ञानाभ्यासरूप क्लेश करना निष्फल है। ॥६८॥ जो नेत्रोंवाला होकर भी कुएमें गिरै उसके नेत्र वृथा हैं उसी तरह जो ज्ञानी -
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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