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________________ ॥६९॥ म. वी. विगाड़ करनेके लिये भेजे हैं। जब यौवनराजाकी अवस्था मंद ( ढीली) होजावी है | 2. तब आश्रयके न होनेसे बुढापेरूप फांसीसे बंधे हुए वे कामदेवादि भी ढीले पड़जाते ।। हैं । इसलिये मैं ऐसा समझता हूं कि जवानअवस्थामें ही अत्यंत कठिन तप करूं जिससे कामदेव व पंचेंद्रिय विपयरूपी वैरियोंका नाश हो । ऐसा विचार कर वे महा । बुद्धिमान् श्रीमहावीर स्वामी चित्तको निर्मल कर राज्यभोगादिकोंसे तो निस्पृह ( इच्छा-श रहित) हुए और मोक्षके साधनमें इच्छावाले होते हुए। | फिर वे महावीर प्रभु घरको कैदखाना समझकर राज्यलक्ष्मीके साथ उसे छोड़नेका और तपोवनको जानेका उद्यम करते हुए । इसप्रकार काललब्धिके आनेपर शुभ परिणामोंसे वे तीर्थराजा महावीरकुमार कामदेवसे उत्पन्न होनेवाले सुखको नहीं भोगके सब सुखोंका भंडार ऐसे वैराग्यको प्राप्त होते हुए। ऐसे वालब्रह्मचारी वे महाहावीर प्रभु स्तुति करनेवाले मुझको अपनी गुणसंपदा देवें । इसप्रकार श्रीसकलकीर्तिदेवविरचित महावीरपुराणमें महावीर भगवानको कुमार अवस्थामें वैराग्यकी उत्पत्तिको कहनेवाला दशवा अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १॥ ॥६९॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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