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________________ वाले देव फूल वगैर: की वर्षा करने लगे और बहुतसे देव 'जय हो आनंद हो' ऐसे शब्द जोर से बोलने लगे इससे बहुत कोलाहल हुआ । उसके बाद सौधर्म इंद्र प्रभुके स्नान करानेके लिए प्रस्ताव करके कलशोंकी रचना करता हुआ । कलशोंके बनानेके मंत्रको जाननेवाला ऐशान इंद्र भी आनंदके साथ मोतियोंकी माला व चंदनसे पूजित पूर्ण कलशको हाथमें लेता हुआ । बाकीके सब कल्पवासी देव हर्षके साथ जय २ शब्द करते हुए यथायोग्य सेवा चाकरी करने लगे । मंगलद्रव्य लिये हुए इंद्राणी आदि देवियां भी उससमय धर्म करनेमें उत्कंठित हुई टहल करने लगीं । स्वयंभू भगवान्‌का शरीर स्वभावसे ही पवित्र है और उनकी देहका लोही दूधके समान है इसलिये क्षीरसमुद्रके जलके सिवाय दूसरा जल स्पर्श करानेके योग्य नहीं है । ऐसा समझकर वे देव निश्वयसे क्षीरसमुद्रका जल लानेके लिये पर्वतेंद्र से लेकर क्षीरसमुद्रतक हर्षके साथ लेंन बांधके खड़े होगये । उससमय वह इंद्र जिनेंद्रके स्नानके लिये आठ योजन गहरे और एक योजन मुखवाले मोतियोंके हारसे शोभायमान ऐसे प्रकाशमान सुवर्णमयी कलशोको पकड़नेके लिये दिव्य आभूषणोंसे मंडित ऐसी हजार भुजायें वनाता हुआ । वह इंद्र आभूषणोंसे मंडित और एक हजार कलशोंसहित एक हजार हाथोंसे ऐसा शोभायमान होने लगा मानों भाजनांग जातिका कल्पवृक्ष ही है। उससमय सौधर्म इंद्र 'जय' ऐसा शब्द तीन वार कहके जिन भगवान के मस्तकपर बहुत मौंटी पहली
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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