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________________ म. वी. कर देवको धारण करनेसे तो और भी अधिक स्वच्छ होती हुई । इस रानीके उदरमें भी विराजमान पुत्र बिलकुल दुःख नहीं पाता हुआ, क्या सीपमें रहनेवाली जलकी बूंद ॥५३॥ १ विकारवाली हो सकती है कभी नहीं ! उस देवके त्रिवलीका भंग नहीं हुआ उदर वैसा ही पूर्ववत् रहा तो भी गर्भ बढता हुआ । यह उस प्रभुका ही प्रभाव है । वह महाराणी गर्भमें स्थित उस पुरुषरत्न प्रभुसे ऐसी शोभायमान होने लगी मानों महान कांतिवाली रत्नोंको अंदर धारण करनेवाली दूसरी पृथ्वी ही हो | अपक्षराओंके साथ इंद्रकी भेजी हुई इंद्राणी हर्पित होके यदि उस माताकी सेवा करे तो | इससे अधिक दूसरी चातका क्या वर्णन करना । इत्यादि सैकड़ों महान् उत्सवों से नौमां महीना पूर्ण होनेपर शुभचैत के महीनेकी सुदि तेरसिके दिन यमणि नाम योगमें | शुभल में वह त्रिसला महादेवी सुखसे पुत्रको जनती हुई । वह पुत्र प्रकाशमान शरीरकी कांति से अंधकारको नाश करनेवाला, जगत्को हितकारी मति आदि तीन सुज्ञानका धारी देदीप्यमान और धर्मतीर्थका प्रवर्तनेवाला तीर्थकर होता हुआ । पु. भ अ. ८ तब इसके जन्म होने के प्रभावसे सब दिशायें निर्मल होगई और आकाशमें सुगंति ठंडी पवन चलने लगी । स्वर्गसे कल्पवृक्षोंके खिले हुए फूलोंकी वर्षा होती हुई ॥५३॥ और चारों जातिके देवोंके आसन कांपने लगे । स्वर्गलोक में बिना बजाए हुए गंभीर
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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