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________________ शब्दवाले घंटा वगैरह बाजे वजनेलगे मानों प्रभुके जन्म उत्सवको ही कह रहे हैं । और तीन जातिके देवोंके महलोंमें सिंह शंख महान भेरी आदिके शब्द अन्य सव आश्रयोंके साथ अपने आप होने लगे । - इन कहे गये चिन्होंसे वे सौधर्म आदि सब इन्द्र जिनभगवानका जन्म जानकर देवों| सहित उस प्रभुके जन्मकल्याणक करनेका विचार करते हुए । उसी समय इन्द्रकी आज्ञासे देवोंकी सेना स्वर्गसे चलनेके लिये महान शब्द ( जय जय ) करती समुद्रसे उठी हुई लहरों की तरह क्रमसे निकलती हुई । हाथी घोडे रथ गंधर्व नृत्यकरनेवालीं पैदल | वैल - इसतरह सात प्रकारकी देवकी सेना निकली । उसके वाद सौधर्म स्वर्गका स्वामी ऐरावत हाथीपर इंद्राणी सहित चढके देवोंकर घिरा हुआ चलता हुआ । उसके पीछे अपनी २ विभूतिसहित धर्ममें उद्यमी सव सामानिक आदि देव उस इंद्रके साथ चलते हुए । उससमय दुंदुभि वाजोंकी महान आवाजसे तथा देवोंके जयजय शब्दसे सातों सेनाओं में बडा भारी शब्द होता हुआ । रास्तेमें कितन ही देव गाते हुए । कोई नाचते हुए, कोई देव खुशी के मारे आगे २ दौड़ते थे । फिर अपने २ छत्र ध्वजा सवारी विमानोंसे आकाश मार्गको रोककर वे चारनिकाय के देव पृथ्वीपर परम विभूतके साथ देवियोंकर सहित क्रमसे कुंडलपुरमें पहुंचते हुए । उस समय ऊपर और वीचका 1
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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