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________________ ॥४८॥ म. वी. १ प्रभावसे स्वर्गलोकमें तो कल्पवासी देवोंके विमानोंमें घंटा वजने लगा और इंद्रोंके है पु. भा. ४ आसन कंपायमान हुए। । ज्योतिपीदेवोंके यहां सिंहनाद अपने आप होने लगा। भवनवासी देवोंके महान् शंखकी || " ध्वनि हुई और व्यंतरदेवों के महलोंमें भेरीकी आवाज़ हुई तथा अन्य बहुतसे अचंभेके ? कार्य सब जगह हुए । इत्यादि अनेक तरहके आश्चर्योंको देख चारों जातिके देव श्रीमहावीर प्रभुका गर्भावतरण जानते हुए । उसके बाद वे स्वर्गपति जिनेंद्रदेवके गर्भकल्याण कका उच्छव करनेके लिये उस श्रेष्ठ नगरमें आते हुए । कैसे हैं वे स्वर्गके स्वामी । जो १ अपनी २ संपदासे शोभित हैं, अपनी २ सवारियोंपर चढ़े हुए हैं, उत्तमधर्म पालनेको। है उद्यमी हैं, अपने अंगके आभूपण और तेजसे दसों दिशाओंको प्रकाशित करनेवाले हैं, 18 १ ध्वजा छत्र विमानादिकोंसे आकाशको ढक दिया है, देव और अपनी देवियोंसहित हैं। । और जयजयशब्द कर रहे हैं। उस समय वह नगर अनेक विमानोंसे, अप्सराओंसे और देवोंकी सेनासे चारों । 5 तरफ घिरा हुआ स्वर्ग सरीखा उत्तम मालूम होने लगा। देवोंकर सहित वे इंद्र जिन ! 8 भगवान के मातापिताओंको सिंहासनपर बैठाके परम उच्छवके साथ प्रकाशमान सोनेके । ॥४८॥ ६ घड़ोंसे भक्तिपूर्वक अभिपेक ( स्नान ) कराके और दिव्य आभूपण माला तथा वस्रोंसे ।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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