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________________ कर्मरूपी काठको भस्म करनेवाला होगा । पीछेसे गजेन्द्र ( हाथी ) के मुखमें प्रवेश होनेसे निर्मलगर्भ में अंतिम तीर्थकर स्वर्गसे आकर प्रवेश करेगा । इसप्रकार उन सोलह स्वप्नोंका श्रेष्ठ फल सुननेसे वह पतिव्रता रोमांचित होकर मानों पुत्रको पा लिया है ऐसा समझ बहुत संतुष्ट होती हुई । उसीसमय पहले स्वर्ग के सौधर्म इन्द्रकी आज्ञासे पद्म आदि सरोवरोंमें रहनेवालीं श्रीआदि छह देवी महलमें आई | आकर तीर्थंकरकी उत्पत्तिके लिये स्वर्गसे लाई हुई पवित्र वस्तुओंसे गर्भको सोधतीं हुईं, जिससे कि पुण्यकी प्राप्ति हो । फिर वे देवियें अपने २ गुणों को जिनमाता में स्थापित करती हुई सेवा करने लगीं । वे गुण इसतरह हैं श्रीदेवी शोभाको, ही देवी लज्जा ( शरम को, धृतिदेवी धीरजको, कीर्तिदेवी | स्तुतिको, बुद्धिदेवी श्रेष्ठ बुद्धिको और लक्ष्मीदेवी भाग्यशालीपनेको - इसतरह माता में ये गुण होते हुए। वह महारानी पहले तो स्वभावसे ही निर्मल थी फिर देवियोंने वस्तुओंसे शुद्ध की तब तो मानों स्फटिकमणिसे ही बनाई गई हो ऐसी शोभने लगी । तदनंतर आषाढ महीने के शुक्लपक्षकी शुद्धतिथी छठको आषाढा नक्षत्र में शुभ लग्न में वह अच्युतेंद्र स्वर्ग से चयकर शुद्धगर्भमें आता हुआ । उस महावीर मधुके गर्भ में आनेके
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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