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________________ - पून गर्भके अंदर मौजूद जिनदेवको यादकर तीन प्रदक्षिणा देकर मस्तक नवाते हुए । अर्थात् नमस्कार करते हुए। | इसप्रकार वह सौधर्म इंद्र गर्भकल्याण कर और जिन माताकी सेवामें दिक्कुमारी देवियोंको रखकर दूसरे इंद्र और देवोंकर सहित परमपुण्यको उपार्जन करता हुआ। खुशीके साथ अपने स्थान (स्वर्ग) को गया। इसतरहं श्रेष्ठ धर्मके पालनेसे वह अच्युतेंद्र स्वर्गमें अत्यंत सुख भोगकर मोक्षसुखकी सिद्धिके लिये तीर्थकर पदका अवतार लेता हुआ। ऐसा समझकर हे भव्य-8 जीवो ! यदि तुम भी सुख चाहते हो तो वीतराग भगवान्के उपदेशे हुए श्रेष्ठ धर्मका पालन करो। इसप्रकार श्रीसकलकीर्ति देवविरचित महावीरपुराणमें भगवान के गर्भावतारको कहनेवाला सातवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥७॥ . . . .
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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