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________________ | २ ] इडिया को सल एक्ट (१८६१) ई ईकोर्ट और अदालत का स्थापना (१८६२) ३० जावता दीवानी ताजीरात ह द और जाबता फोजदारी का प्रयोग करता कर की माफी आदि कार्यों ने जनता को प्रसन्न कर दिया । सन् १८७७ ई० के राज दरबार मे देशी राजा-महाराजाओं ने अपनी राजमक्ति का विराट प्रदर्शन किया । १६ वी शती के अन्तिम चरण में और भी राजनैतिक सुधारों का प्रारम्भ हुआ । स्वायत शासन की स्थापना जिलों और तहसीलों में बोडों का निर्माण आदि नवीन विधानों ने भारतेन्दु, बालमुकुन्द गुप्त श्रीधर पाठक, बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन, राधाकृष्णदास आदि साहित्यकारों को शासकों की प्रशस्तियां लिखने के लिए प्रेरित किया । राजनैतिक परिस्थिति के उपर्युक्त पक्ष में तो प्रकाश था परन्तु दूसरा पक्ष ग्रन्थकारमय था | राजभक्ति और देशभक्ति की भिन्नता भारत के लिए अभिशाप है । राजभक्त होकर भी साहित्यकार " देशभक्ति को भूल न सके । देश-दशा का चित्र खीचने में भी उन्होंने पूरी क्षमता दिखलाई : भीतर भीतर सब रस चूमै, बाहर से तन मन धन मूमै । जाहिर बात में अतितेज, क्यों सखि साजन ? नहिं अंगरेज ॥ १ इस दिशा में पत्र-पत्रिकाओं की देन विशेष महत्व की है "सार सुधा निधि" और "भारत मित्र' ने साम्राज्यवादी रेजो की युद्ध नीति और सभ्यता पर आक्षेप किए। गदाधर सिंह ने "चीन में तेरह मास" पुस्तक मे साम्राज्यवाद का नग्न चित्र खीचा । "सार सुधा निधि" मे प्रकाशित 'यमलोक की यात्रा" मे राजनैतिक दमन और 'मार्जार मूत्रक' ने रूस का भय दिखा कर रक्षा के बहाने भारतवासियों पर प्रातंक जमाने वाली ब्रिटिश नीति की व्यजना की । राधाचरण गोस्वामी ने पत्र - सपादकों के प्रति किए जाने वाले अन्याय और टैक्स आदि की बातों पर आक्षेप किया । बाबू बालमुकुन्द गुप्त ने भी अपने 'तुम्हें क्या ' 'होली' आदि निबन्धों तथा 'शिवशम्भु के चिट्ठे' में विदेशी शासन पर खूब व्यंग्य प्रहार किया | यही नहीं, अगरेजी शासन के समर्थकरण जमींदारों पर भी साहित्यकारों की लेखनी चली । भारतेन्दु ने अपने 'अन्धेर नगरी' प्रहसन में ( १८८१ ई० ) मे एक देशी नरेश ( डुमरांव ) के अन्यायों पर व्यंग्य किया है । ૨ सन् १८५७ ई० के विद्रोह को राष्ट्रीय उन्मेष कहना मारी भूल है । उसमें राष्ट्रीय १ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, 'भारतेन्दु ग्रन्थावली, पृ० ८११ । २ समय समय पर 'भारत-मित्र' में प्रकाशित और 'गुप्त निभावली' में संकलित I
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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