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________________ BE - पहला अध्याय भूमिका अगरेजों की दिन दिन बढ़ती हुई शक्ति भारतीय इतिहास का नूतन परिच्छेद लिखती जा रही थी । सन् १८३३ ई० और १८५६ ई. के बीच बरती जाने वाली राजनीति ने देश मे क्राति उपस्थित कर दी । सिध, पंजाब, अवध आदि की स्वाधीनता का अपहरण, झाँसी की रानी को गोद लेने की मनाही, नाना साहब की पैंशन की समाप्ति, सिविल सर्विस परीक्षाओं में भारतीयों के विरुद्ध अनुचित पक्षपात, भारतीय सैनिकों को बलात् बाहर भेजने की आज्ञा आदि आपत्तिजनक कार्यों ने जनता को असन्तुष्ट कर दिया । देश के अनेक स्थानों में प्रतिहिंसा की ज्वाला धधक उठी। १८५७ ई० का विद्रोह किसी प्रकार शान्त किया गया । हिन्दी के साहित्यकार अधिकतर मध्यम और उच्च वर्ग के थे। उन्हे शाभकों से काम था । मुसलमानों और अत्याचारी शासन, विद्रोह के भयानक परिणाम और शासको की विशेष कृपा मे प्रभावित होने के कारण उन्होंने सन् १८५७ ई० के सिपाही-विद्रोह की चर्चा अपनी रचनालों में नहीं की। परन्तु जन साधारण ने "खूब लटी मरदानी, अरे झासी बाली रानी"१ श्रादि लोक-गीतो के द्वारा अपनी विद्रोह भावना को अभिव्यक्ति की । महारानी विक्टोरिया के घोषणापत्र में सहृदयता, उदारता और धार्मिक सहिष्णुता थी। उससे देशी राजाश्री और प्रजा को आश्वासन मिला। उनका भय और असन्तोष दूर हुअा । कवियों ने गद्गद् कंठ से अगरेजी राज्य का गुणगान किया। परन मोक्षफल राजपद परसन जीवन मोहि । बृटनदेवता राजमुत पद परसहु चित माहि । जयति धर्म सब देश जय भारतभूमि नरेश । जयति राज राजेश्वरी जय जय जय परमेश ।३ १ बुन्देलखंड में प्रचलित लोक गीन जिसके आधार पर सुभद्राकुमारी चौहान ने लिखा है "बुन्देले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी।" २ भारतेन्दु-ग्रन्थावली, पृ० ७०२ ॥ __ ३ सक्किादरा व्यास मनकी उमग दव पुरुष दृश्य
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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