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________________ २७४ । प्रताप' निकाला १६॥ ई० में सुन्दरलाल न दूसरा पत्र भनिभ्य निकाला जा साप्ताहिक से दैनिक हो कर वन्द हो गया । १६२०, २१ ई0 के असहयोग आन्दोलन के पास पाम 'कर्मवीर' ( खंडवा ), 'स्वराज्य' ( खंडवा), 'सैनिक' (अागरा ), 'स्वदेश' ( गोरखपुर ), श्रादि अनेक साप्ताहिक पत्र निकले । 'भारतमित्र' आदि साप्ताहिक पत्री की गजनैतिक दृष्टि नरम थी । टंडन जी के सम्पादन काल में 'अभ्युदय' के विचार भी नरम रहे किन्तु कृष्णकान्त मालवीय के श्राने पर वह गरम दल का समर्थक हो गया । 'हिन्दी केशरी' लोक. मान्य तिलक के 'मराठी केसरी' का अनुवाद मात्र था । 'कर्मयोगी' के राजनैतिक विचार उनतम थे, अतएव यह सरकार का कोपभाजन हुअा 1 राष्टीय 'प्रताप' सच्चे अर्थ मे जनता का पत्र था ! 'कर्मवीर' आदि उसी के अादर्श के अनुपालक थे। 'भविष्य' की निर्मीक और तेजस्वी नीति ने उमे भी शीघ्र ही सरकार की शनिदृष्टि का लक्ष्य बना डाला ।' द्विवेदी-युग के सम्पूर्ण पत्र-साहित्य का श्राप्त विवरण देने के लिए स्वतन्त्र गवेषणा करने और निबन्ध लिखने की आवश्यकता है। प्रस्तुत अयच्छेद उसका मिहावलोकन भर कर मक्ते हैं। काशी नागरी प्रचारिणी मभा के इक्कीसवें कार्य विवरण से प्रकट है कि १६१३, १४ ई० मे केवल 'भारतमित्र' ही दैनिक पत्र था ! हिन्दी वंगवासी', 'भारतमित्र', 'वेंकटेश्वर ममाचार', 'वीर भारत', 'अभ्युदय', 'बिहार बन्धु', 'भारत जीवन', 'महर्म प्रचारक', 'अानन्द', “आर्य मित्र', 'मिथिला मिहिर', 'जयाजी प्रताप', 'शुभचिन्तक', 'शिक्षा', 'फौजी अग्ववार', 'भारत', 'सुदशा प्रवर्तक', 'पाटलिपुत्र', 'अलमोड़ा अखबार', आदि साप्ताहिक थे । 'राजपूत', 'क्षत्रिय मित्र', 'जैन मित्र', 'जैन शासन', 'श्राचार्य' आदि का प्रकाशन पाक्षिक था । 'सरस्वती' 'मर्वादा', 'प्रभा', 'इंदु', 'लक्ष्मी', 'नवनीत', 'चित्रमय जगत', 'स्वर्ग माला' 'हितकारिणी', 'एजुकेशनल गजट' 'बाल-हित पी', 'नवजीवन', जैन हितपी', मत्यवादी', 'वैदिक सर्वस्व' आदि मासिक पत्रिकाएँ थी। 'सुधानिधि', 'वैद्य', 'वैद्य-कल्पतरु', आरोग्य जीवन' आदि वैद्यक विषय के 'क्षत्रिय समाचार', 'अग्रवाल', 'जैन गजट', 'दिगम्बर जैन', 'कान्यकुब्ज हितकारी', 'गौड हितकारी', 'पालीवाल ब्राह्मणोदय', 'सनाढ्य', 'माहेश्वरी', 'तैलीम समाचार', 'जागीडा समाचार', 'कलवार मित्र' आदि जातीय 'स्त्री दर्पण', गृहलक्ष्मी', चाद, 'स्त्रीधर्मशिक्षक', अादि स्त्री-शिक्षा-सम्बन्धी, 'कन्यामनोरंजन' और 'कन्यासर्वस्व' मचित्र पत्र थे । 'जासूस' 'उपन्यास लगी', 'उपन्यास बहार', 'उपन्याममाला' पा० टि. । पत्रों का उपयुन विपरव भाज के रनत जयती अक के माधार पर दिया ___ गया है
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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